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कविता

दो ध्रुव

महेन्द्र भटनागर


स्पष्ट विभाजित है
            जन-समुदाय -
समर्थ / असहाय।
हैं एक ओर -
भ्रष्ट राजनीतिक दल
उनके अनुयायी खल,
सुख-सुविधा-साधन-संपन्न
            प्रसन्न।
धन-स्वर्ण से लबालब
आरामतलब / साहब और मुसाहब!
बँगले हैं / चकले हैं,
तलघर हैं / बंकर हैं,
भोग रहे हैं
जीवन की तरह-तरह की नेमत,
           हैरत है, हैरत!

दूसरी तरफ -
जन हैं
भूखे-प्यासे दुर्बल, अभावग्रस्त... त्रस्त,
अनपढ़,
दलित असंगठित,
खेतों-गाँवों / बाजारों-नगरों में
            श्रमरत,
शोषित / वंचित / शंकित!


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हिंदी समय में महेन्द्र भटनागर की रचनाएँ