कितना खुदगरज
हो गया इनसान!
बड़ा खुश है
पाकर तनिक-सा लाभ -
बेच कर ईमान!
चंद सिक्कों के लिए
कर आया
शैतान को मतदान,
नहीं मालूम
'खुद्दार' का मतलब
गट-गट पी रहा अपमान!
रिझाने मंत्रियों को
उनके सामने
कठपुतली बना निष्प्राण,
अजनबी-सा दीखता -
आदमी की
खो चुका पहचान!