विश्व का इतिहास
साक्षी है -
अभावों की
धधकती आग में
जीवन
हवन जिनने किया,
अन्याय से लड़ते
व्यवस्था को बदलते
पीढ़ियों
यौवन
दहन जिनने किया,
वे ही
छले जाते रहे
प्रत्येक युग में,
क्रूर शोषण-चक्र में
अविरत
दले जाते रहे
प्रत्येक युग में!
विषमता
और...
बढ़ती गई,
बढ़ता गया
विस्तार अंतर का!
हुआ धनवान
और साधनभूत,
निर्धन -
और निर्धन,
अर्थ गौरव हीन,
हतप्रभ दीन!
लेकिन;
विश्व का इतिहास
साक्षी है -
परस्पर
साम्यवाही भावना इनसान की
निष्क्रिय नहीं होगी,
न मानेगी पराभव!
लक्ष्य तक पहुँचे बिना
होगी नहीं विचलित,
न भटकेगा / हटेगा
एक क्षण
अवरुद्ध हो लाचार
समता-राह से मानव!