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कविता

समता-स्वप्न

महेन्द्र भटनागर


विश्व का इतिहास
साक्षी है -

अभावों की
धधकती आग में
          जीवन
          हवन जिनने किया,
अन्याय से लड़ते
व्यवस्था को बदलते
पीढ़ियों
यौवन
दहन जिनने किया,

वे ही
छले जाते रहे
प्रत्येक युग में,
क्रूर शोषण-चक्र में

अविरत
दले जाते रहे
प्रत्येक युग में!

विषमता
और...
        बढ़ती गई,
बढ़ता गया
विस्तार अंतर का!
        हुआ धनवान
        और साधनभूत,
        निर्धन -
       और निर्धन,
      अर्थ गौरव हीन,
       हतप्रभ दीन!

लेकिन;
विश्व का इतिहास
साक्षी है -

परस्पर
साम्यवाही भावना इनसान की
निष्क्रिय नहीं होगी,
न मानेगी पराभव!

लक्ष्य तक पहुँचे बिना
होगी नहीं विचलित,
न भटकेगा / हटेगा
एक क्षण
अवरुद्ध हो लाचार
समता-राह से मानव!


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