सहधर्मी / सहकर्मी
खोज निकाले हैं
दूर-दूर से
आस-पास से
और जुड़ गया है
अंग-अंग
सहज
किंतु / रहस्यपूर्ण ढंग से
अटूट तारों से,
चारों छोरों से
पक्के डोरों से!
अब कहाँ अकेला हूँ?
कितना विस्तृत हो गया अचानक
परिवार आज मेरा यह!
जाते-जाते
कैसे बरस पड़ा झर-झर
विशुद्ध प्यार घनेरा यह!
नहलाता आत्मा को
गहरे-गहरे!
लहराता मन का
रिक्त सरोवर
ओर-छोर
भरे-भरे!