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कविता

एक अनछुई जिंदगी

शैलेंद्र कुमार शुक्ल


यूँ ही किसी की जिंदगी में
एक नेह भरा निमंत्रण
और बड़ी दूर से देखना...
हँसती हुई निगाहें पास बुलाती हैं
जाने के लिए एक कदम भी नहीं उठता
लेकिन कदमों की आहट जिलाए रखती है
कहने को तो मैं कुछ भी नहीं कह पाता
मेरा न कुछ कह पाना, कुछ तो कह ही देता होगा
फिर भी जिंदगी दाँव पर लगा कर खेलना
किसी मजबूरी से कम नहीं है
जीतने की पुरजोर कोशिश में एक हार
शायद अनछुई जिंदगी से कीमती है।


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