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कविता

कुछ करना

शैलेंद्र कुमार शुक्ल


कहते हैं मेरे हमउम्र सलाहकार
कि जिनकी सलाह से
चलती है सारी दुनिया
कि जिनके मशविरे पर
कुदरत लाज-शरम के मारे मर रही है
घुट-घुट कर
सांस तक नहीं ले पाती बेचारी

ये अवैतनिक सलाहकार
गद्दरमुस्की के सिपहसालार
इनके दिमाग में कुछ नहीं होता
होता तो बस
गोलोबाकार उदर में है
जिसके बाहर हमें तलाशनी है
अपने देश की जमीन
जमीन नहीं अपने देश का नक्शा !

इनकी सलाह है और
सलाह का अंतिम निष्कर्ष
जब आदमी 'कुछ' नहीं कर पाता
तो दो काम करता है
एक तो बच्चा पैदा करता है
और दूसरे कविता लिखता है

एक आलोचक की मानूँ
तो 'कुछ' करना बहुत कुछ जानवर होना है ।


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