नीम के एक पुराने दरख्त
की डाल पर
बैठा है एक कौवे का जोड़ा
कर रहा है हास परिहास और लास्य भी
हालाँकि इनकी जींस में हैं तांडव के गुण
गाँव की बूढ़ी आँखों से देखूँ
तो कह सकता हूँ कि ये नर-मादा हैं
यानी दुलहिन-दुलहा
विश्वविद्यालय के धुरंधर आचार्य
इन्हें देख कर खड़ा करते हैं यक्ष प्रश्न
दलित विमर्श और स्त्री विमर्श का
और सेमिनार में करते हैं डिबेट
स्वानुभूति और सहानुभूति के बारे में
बहरहाल मैं तो
गँवार हूँ !