सागर की लहरों की तरह
ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर
उड़ने वाले पंछी
तुम्हें खरखइंचा मामा कहते थे ना
मेरे गाँव के भोले-भाले बच्चे
पूछते थे कि नदी कितनी गहरी है
तुम तरंगित होकर उड़ते थे ना
'इत्ती ऽऽ ... इत्ती ss '
'स्वेत-श्याम' रंग वाले पंछी
तुम कितने चंचल होते थे
फुदक-फुदक कर चलते थे ना
कविता करने वाले ये कवि
तुम्हारी आकार वृत्ति पर
रीझते-रीझते रीझ गए
उन्हें क्या पता था कि
'खंजन नयन' को कविता में देखकर
कल के लोग
इसे काव्य-रूढ़ि कहेंगे