लखनऊ और बनारस से
भागा था जब मैं
हाल-बेहाल
दोस्त हैदराबाद तुम काम आए थे
तुमने दिया था एक आसमान
आसमान के नीचे बसी है जहाँ धरती
धरती पर उगे हैं जहाँ पहाड़
दोस्त पहली बार तुम मिले थे विश्वविद्यालय में
मुस्कराते हुए
पूछ रहे थे हाल-चाल
लखनऊ और बनारस के
बहुत जल्दी में थे तुम
बारिश में भीगते हुए
मुझे वैसे ही याद है दोस्त
तुमने ही बताया था सुवास कुमार और लाल्टू के बारे में
लेकिन पूरा साल बीत गया तुम दिखे नहीं
और आज जब मैं जा रहा हूँ छोड़ कर शहर
तुम पहाड़ पर पंख फैलाए पड़े हो
जटायु की तरह
उदास और बेमन
अलविदा दोस्त हैदराबाद... अलविदा...