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कविता

पावस

शैलेंद्र कुमार शुक्ल


मुझे रंगीन कागजों की जरूरत नहीं
हमें मेहनती शरीर से पसीने की
झलकती हुई बूँदें चाहिए
जी हाँ मैं कवि हूँ
कविता लिखना चाहता हूँ
मुझे बरसात की झीनी-झीनी फुहारें मिलें न मिलें
हमें पावस की उमस चाहिए
जी हाँ मैं किसान हूँ
क्रांति-बीज बोना चाहता हूँ
मुझसे अभी सावन-भादों-क्वार-कातिक
या फागुन की बातें मत करो
मैं आसाढ़ की पहली बारिश में भीग कर
ठहरी हवा में उमस से आकुल-व्याकुल
होना चाहता हूँ।


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