हे पुरुष !
मैं अपनी उपस्थिति दर्ज करती हूँ
किंतु आकांक्षा के सहज उत्कर्ष के लिए भर नहीं
पग-पग तेरे बाईं ओर चलने के लिए
शिखर पर पहुँचते ही प्रथम पग धरने का अवसर मैं तुझे दूँगी
कि मैंने पहनी हैं अपने कानों में तेरी प्रार्थना की बालियाँ
हे बलिष्ठ !
जा ढूँढ़ खदानों और समुद्रों में वह धातु जिसका मूल गुण लचीलापन है
आग में तप कर गढ़ने के बाद भी मुड़ना न छोड़ने वाली धातु का सुनार बन
तू अपनी बेटी का पुत्र है
तुझे पहनानी ही होंगी उसे वो बालियाँ
तुझे आशीर्वाद का मुकुट पहनाते हुए मैं तृप्त हूँ और हर आकांक्षा से मुक्त भी