मत ढूँढ़ो मुझे शब्दों में
मैं मात्राओं में पूरी नहीं
व्याकरण के लिए चुनौती हूँ
न खोजो मुझे रागों में
शास्त्रीय से दूर आवारा स्वर हूँ
एक तिलिस्मी धुन हूँ
मेरे पैरों की थाप
महज कदमताल नहीं
एक आदिम जिप्सी नृत्य हूँ
अपने पैने नाखूनों को कुतर डालो
मेरी तलाश में मुझे मत नोचो
एक नदी जो सो रही है भीतर कहीं
उसे छूने की चाह में मुझे मत खोदो
मत चीरो फाड़ो
कि मेरी नाभि से ही उगते हैं रहस्य
इस सुगंध को पीना ही मुझे पीना है
मुझे पा लेना मुट्ठी भर मिट्टी पाने के बराबर है
मुझमें खोना ही अनंत आकाश को समेट लेना है
स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं
सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत