जब-तब वह मुझे टकरा जाता है।
	दो चकमक पत्थर हैं शायद हम
	लगातार टकराने से
	हमारे बीच चिनकता है
	आग का संक्षिप्त हस्ताक्षर
	बस एक इनिशियल
	
	
	जैसा कि विड्राअल फार्म पर
	करना होता है
	कट-कुट होते ही।
	
	
	क्यों होती है इमसे इतनी कट-कुट आखिर ?
	क्या खाते में कुछ बचा ही नहीं है ?
	खाता और उसका ?
	
	
	उसका खाता बस इतना है
	वह खाता है
	धूँधर माता की कसम
	और धंधे की -
	'पेट में नहीं एक दाना गया है
	अगरबत्तियाँ ले लो - दस की दो!'
	
	
	इस नन्हें सौदागर सिंदबाद से कोई
	कहे भी तो क्या और कैसे ?
	बीच समुंदर में उलटा है इसका जहाज।
	अबाबील की चोच में लटके-लटके
	
	
	और कितनी दूर उड़ना होगा इसको
	इस जनसमुद्र की दहाड़ रही लहरों पर ?
	वह मेरे बच्चे से भी कुछ छोटा ही है।
	एक दिन फ्लाईओवर के नीचे मुझको दीखा
	मस्ती में गोल-गोल दौड़ता हुआ।
	
	
	'ओए, की गल है?
	अकेले-अकेले ये क्या खा रहा है?' मैंने जब पूछा,
	एक मिनट को वह रुका, बोला हँसकर
	'कहते हैं इसको ईरानी पुलाव।
	सुबह-सुबह होटल के पिछवाड़े बँटता है!
	खाने पर पेट जोर से दुखता है,
	लेकिन भरा हो तो दुखने का क्या है !
	तीस बार गोल-गोल दौड़ो
	फिर मजे में थककर सो जाओ!
	खाना है ईरानी पुलाव ?'