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कविता

हम हरे हैं
नवनीत पांडे


हवाएँ खिलाफ हैं
चाहती हैं
उखाड़ फेंकना हमें

पर वे जानती नहीं
हमारी जड़ें
कितनी गहरी हैं

हम हरे हैं
भरे हैं


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हिंदी समय में नवनीत पांडे की रचनाएँ