हवाएँ खिलाफ हैं चाहती हैं उखाड़ फेंकना हमें
पर वे जानती नहीं हमारी जड़ें कितनी गहरी हैं
हम हरे हैं भरे हैं
हिंदी समय में नवनीत पांडे की रचनाएँ