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रचनावली

अज्ञेय रचनावली
खंड : 1
संपूर्ण कविताएँ - 1

अज्ञेय

संपादन - कृष्णदत्त पालीवाल

अनुक्रम परिशिष्ट पीछे    

अज्ञेय रचनावली

खंड 1
 

 

परिशिष्ट

1

'अज्ञेय' : प्रकाशित काव्य-ग्रन्थ

भग्नदूत (1935)

चिन्ता (1942)

इत्यलम् (1946)

शरणार्थी (कविताएँ और कहानियाँ) (1948)

हरी घास पर क्षण भर (1949)

बावरा अहेरी (1954)

इन्द्र-धनु रौंदे हुए ये (1957)

अरी ओ करुणा प्रभामय (1959)

आँगन के पार द्वार (1961)

कितनी नावों में कितनी बार (1967)

क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969)

सागर-मुद्रा (1970)

पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973)

महावृक्ष के नीचे (1977)

नदी की बाँक पर छाया (1981)

ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986)

पूर्वा ('इत्यलम्' और 'हरी घास पर क्षण भर') (1965)

सुनहले शैवाल (चित्रालंकृत संकलन) (1965)

प्रि जन डे ज ऐंड अवर पोएम्स (अंग्रेजी में) (1946)

2
शीर्षकों की सूची

 
[यहाँ रचनाओं का वर्ष भी दे दिया गया है; साथ ही उन संकलनों के नाम भी जिन में रचना पहले प्रकाशित हुई थी।
 
संकेत : अप्र.-अप्रकाशित, भग्न.-भग्नदूत, इत्य.-इत्यलम्, हरी घा.-हरी घास पर क्षण भर, बाव.-बावरा अहेरी, इन्द्र.-इन्द्र-धनु रौंदे हुए ये, अरी ओ.-अरी ओ करुणा प्रभामय, शर.-शरणार्थी।
 
'चिन्ता' की कविताओं के अलग शीर्षक न होने से परिशिष्ट में केवल उनकी प्रथम पंक्तियों की सूची दी गयी है।]
 
 
 
विकल्प ... भग्न. ...
 
पूर्व-स्मृति ... भग्न. ...
 
सम्भाव्य ... भग्न. ...
 
क्योंकर मुझे भुलाओगे ... भग्न. ...
 
गीति- ... भग्न. ...
 
गीति-2 ... भग्न. ...
 
बत्ती और शिखा ... भग्न. ...
 
तुम और मैं ... भग्न. ...
 
घट ... भग्न. ...
 
अपना गान ... भग्न. ...
 
लक्षण ... भग्न. ...
 
दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब ... भग्न. ...
 
प्रश्नोत्तर ... भग्न. ...
 
प्रात: कुमुदिनी ... भग्न. ...
 
कविता ... भग्न. ...
 
2
 
क्रान्ति-पथे ... भग्न. ...
 
रहस्य ... भग्न. ...
 
पराजय-गान ... भग्न. ...
 
कहो कैसे मन को समझा लूँ ... भग्न. ...
 
दीपावली का एक दीप ... भग्न. ...
 
नहीं तेरे चरणों में ... भग्न. ...
 
प्रस्थान ... भग्न. ...
 
असीम प्रणय की तृष्णा ... भग्न. ...
 
शिशिर के प्रति ... भग्न. ...
 
कवि ... भग्न. ...
 
अनुरोध ... भग्न. ...
 
 
 
अकाल-घन ... इत्य. ...
 
चलो, चलें! ... इत्य. ...
 
विशाल जीवन ... इत्य. ...
 
 
 
वन-पारावत ... इत्य. ...
 
कीर ... इत्य. ...
 
'दर चाइल्ड इ ज द फादर ऑ फ द मैन... इत्य. ...
 
धु्रव ... इत्य. ...
 
सूर्यास्त ... इत्य. ...
 
बद्ध ... इत्य. ...
 
जीवन-दान ... इत्य. ...
 
बन्दी और विश्व ... इत्य. ...
 
उषा के समय ... इत्य. ...
 
प्रेरणा ... इत्य. ...
 
अन्तिम आलोक ... इत्य. ...
 
तन्द्रा में अनुभूति ... इत्य. ...
 
 
 
घृणा का गान ... इत्य. ...
 
बन्दी-गृह की खिड़की ... इत्य. ...
 
अचरज ... इत्य. ...
 
प्राण तुम्हारी पद-रज फूली ... इत्य. ...
 
कीर की पुकार ... इत्य. ...
 
स्मृति ... इत्य. ...
 
राखी ... इत्य. ...
 
मत माँग ... इत्य. ...
 
गा दो ... इत्य. ...
 
दिवाकर के प्रति दीप ... इत्य. ...
 
विश्वास ... इत्य. ...
 
धूल-भरा दिन ... इत्य. ...
 
अतीत की पुकार ... इत्य. ...
 
मैं वह धनु हूँ- ... इत्य. ...
 
निमीलन ... इत्य. ...
 
विपर्यास ... इत्य. ...
 
ताजमहल की छाया में ... इत्य. ...
 
प्रार्थना ... इत्य. ...
 
 
 
अखंड ज्योति ... इत्य. ...
 
गोप गीत ... इत्य. ...
 
नाम तेरा ... इत्य. ...
 
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! ... इत्य. ...
 
विधाता वाम होता है ... इत्य. ...
 
आज थका हिय-हारिल मेरा! ... इत्य. ...
 
एक चित्र ... इत्य. ...
 
चिन्तामय ... इत्य. ...
 
 
 
द्वितीया ... इत्य. ...
 
रहस्यवाद ... इत्य. ..
 
ओ मेरे दिल! ... इत्य. ..
 
निवेदन ... इत्य. ..
 
मैं ने आहुति बन कर देखा- ... इत्य. ..
 
रक्तस्नात वह मेरा सा की ... इत्य. ..
 
 
 
पार्क की बेंच ... इत्य. ..
 
आह्वान ... इत्य. ..
 
दूरवासी मीत मेरे ... इत्य. ..
 
उड़ चल, हारिल ... इत्य. ..
 
9
 
रजनीगन्धा मेरा मानस ... इत्य. ...
 
सावन-मेघ ... इत्य. ...
 
 
 
वसन्त-गीत ... बाव. ...
 
उष:काल की भव्य शान्ति ... इत्य. ..
 
निरालोक ... इत्य. ...
 
क्षण-भर सम्मोहन छा जावे! ... इत्य. ...
 
 
 
शिशिर की राका-निशा ... इत्य. ...
 
वर्ग-भावना-सटीक ... इत्य. ...
 
ऋतुराज ... अरी ओ. ...
 
रात होते-प्रात होते ... इत्य. ...
 
मिट्टी ही ईहा है! ... इत्य. ...
 
जब-जब पीड़ा मन में उमँगी ... इत्य. ...
 
जैसे तुझे स्वीकार हो ... इत्य. ...
 
चार का गजर ... इत्य. ...
 
भादों की उमस ... इत्य. ...
 
चेहरा उदास ... इत्य. ..
 
चरण पर धर चरण ... इत्य. ...
 
मुक्त है आकाश ... इत्य. ...
 
2
 
ये मेघ साहसिक सैलानी ... बाव. ...
 
किस ने देखा चाँद- ... इत्य. ...
 
 
 
मेरी थकी हुई आँखों को ... इत्य. ...
 
आज मैं पहचानता हूँँ- ... इत्य. ...
 
कृत-बोध ... इत्य. ...
 
 
 
बदली की साँझ ... इत्य. ...
 
आशी: ... इत्य. ...
 
वीर-बहू ... इत्य. ...
 
कल की निशि ... इत्य. ...
 
प्रिया के हित गीत ... इत्य. ...
 
 
 
देश क्षितिज पर भरा चाँद ... इत्य. ...
 
प्रतीक्षा ... इत्य. ...
 
एक दर्शन ... इत्य. ...
 
हिमन्ती बयार ... इत्य. ..
 
नन्ही शिखा ... इत्य. ..
 
माघ-फागुन-चैत ... इत्य. ...
 
जागर ... इत्य. ...
 
शाली ... इत्य. ...
 
'आषाढस्य प्रथम दिवसे-' ... इत्य. ...
 
पानी बरसा! ... इत्य. ...
 
किस ने देखा चाँद-2 ... इत्य. ...
 
देखती है दीठ ... हरी घा. ...
 
 
 
जन्म-दिवस ... इत्य. ...
 
समाधि-लेख ... इत्य. ..
 
क्षमा की वेला ... हरी घा. ...
 
एक ऑटोग्रा फ ... हरी घा. ...
 
तुम्हीं हो क्या बन्धु वह ... हरी घा. ...
 
प्रणति ... हरी घा. ...
 
राह बदलती नहीं ... हरी घा. ...
 
विश्वास का वारिद ... हरी घा. ...
 
किरण मर जाएगी ... हरी घा. ...
 
शक्ति का उत्पात ... हरी घा. ...
 
पराजय है याद ... हरी घा. ...
 
दीप थे अगणित ... हरी घा. ...
 
खुलती आँख का सपना ... हरी घा. ...
 
 
 
पावस-प्रात, शिलङ् ... हरी घा. ...
 
सागर के किनारे ... हरी घा. ...
 
दूर्वाचल ... हरी घा. ...
 
कितनी शान्ति! कितनी शान्ति! ... हरी घा. ...
 
मानव की आँख ... शर. ..
 
पक गयी खेती ... शर. ...
 
ठाँव नहीं ... शर. ...
 
मिरगी पड़ी ... शर. ...
 
रुकेंगे तो मरेंगे ... शर. ...
 
समानान्तर साँप ... शर. ...
 
गाड़ी रुक गयी ... शर. ...
 
हमारा रक्त ... शर. ...
 
श्री मद्धर्मधुरंधर पंडा ... शर. ..
 
कहती है पत्रिका ... शर. ...
 
जीना है बन सीने का साँप ... शर. ...
 
कतकी पूनो ... हरी घा. ...
 
 
 
वसन्त की बदली ... हरी घा. ...
 
मुझे सब कुछ याद है ... हरी घा. ...
 
'अकेली न जैयो राधे जमुना के तीर' ... हरी घा. ...
 
जब पपीहे ने पुकारा ... हरी घा. ...
 
माहीवाल से ... हरी घा. ...
 
शरद ... हरी घा.
 
क्वाँर की बयार ... हरी घा.
 
सो रहा है झोंप ... हरी घा.
 
'......' ... अप्र.
 
सवेरे-सवेरे ... हरी घा.
 
9
 
सपने मैं ने भी देखे हैं ... हरी घा.
 
पुनराविष्कार ... हरी घा. 2
 
हमारा देश ... हरी घा. 2
 
जीवन ... हरी घा.
 
नयी व्यंजना ... हरी घा.
 
कवि, हुआ क्या फिर ... हरी घा.
 
बन्धु हैं नदियाँ ... हरी घा.
 
हरी घास पर क्षण-भर ... हरी घा.
 
पहला दौंगरा ... हरी घा.
 
मेरा तारा ... हरी घा. 9
 
आत्मा बोली ... हरी घा. ...
 
कलगी बाजरे की ... हरी घा. ...
 
नदी के द्वीप ... हरी घा. ...
 
छन्द है यह फूल ... हरी घा. ...
 
बने मंजूष यह अन्तस् ... हरी घा. ...
 
 
 
जनवरी छब्बीस ... बाव. ...
 
घास-फूल धैर्य का ... बाव. ...
 
खद्योत-दर्शन ... बाव. ...
 
तारा-दर्शन ... बाव. ...
 
काँगड़े की छोरियाँ ... बाव. ...
 
तुम फिर आ गये, क्वाँर? ... बाव. ...
 
चाँदनी जी लो ... बाव. ...
 
झरने के लिए ... बाव. ...
 
 
 
ऊगा तारा ... बाव. ...
 
वह नाम ... बाव. ...
 
वहाँ-रात ... बाव. ...
 
प्रथम किरण ... बाव. ...
 
हवाई यात्रा ... बाव. ...
 
हवाएँ चेत की ... बाव. ...
 
शरत् की साँझ के पंछी ... बाव. ...
 
मालाबार का एक दृश्य ... इन्द्र. ...
 
वेदना की कोर ... बाव. ...
 
बावरा अहेरी ... बाव. ...
 
2
 
वर्षान्त ... बाव. ...
 
द फ्तर : शाम ... बाव. ...
 
जाता हूँ सोने ... बाव. ...
 
सन्ध्या तारा ... बाव. ...
 
तडि़द्दर्शन ... बाव. ...
 
विज्ञप्ति ... बाव. ...
 
सवेरे-सवेरे तुम्हारा नाम ... बाव. ...
 
नख-शिख ... बाव. ...
 
 
 
शोषक भैया ... बाव. ..
 
अन्धड़ ... बाव. ..
 
आज तुम शब्द न दो ... बाव. ...
 
यह दीप अकेला ... बाव. ...
 
उषा-दर्शन ... बाव. ...
 
जो कहा नहीं गया ... बाव. ...
 
देह-वल्ली ... बाव. ...
 
 
 
यही एक अमरत्व है ... इन्द्र. ...
 
सत्य तो बहुत मिले ... इन्द्र. ...
 
पुनर्दर्शनीय ... इन्द्र.
 
टेसू ... इन्द्र.
 
मरु और खेत ... इन्द्र. ...
 
इतिहास का न्याय ... इन्द्र. ...
 
शाश्वत सम्बन्ध ... इन्द्र. ...
 
चातक पिउ बोलो ... इन्द्र. ...
 
रेंक ... इन्द्र. ...
 
साँप ... इन्द्र. ...
 
शब्द ... इन्द्र. ...
 
एक रोगिणी बालिका के प्रति ... इन्द्र. ...
 
एक मंगलाचरण ... इन्द्र. ...
 
मैं वहाँ हूँ ... इन्द्र. ...
 
इतिहास की हवा ... इन्द्र. ...
 
क्योंकि तुम हो ... इन्द्र. ...
 
गोवद्र्धन ... इन्द्र. ...
 
सीढिय़ाँ ... इन्द्र. ...
 
अतिथि सब गये ... अप्र्र. ...
 
विपर्यय ... इन्द्र. ...
 
हम ने पौधे से कहा ... इन्द्र. ...
 
मेरे विचार हैं दीप ... इन्द्र. ...
 
तुम कदाचित् न भी जानो ... इन्द्र. ...
 
 
 
घुमडऩ के बाद ... इन्द्र. ...
 
नयी कविता : एक सम्भाव्य भूमिका ... इन्द्र. ...
 
साँझ : मोड़ पर विदा ... इन्द्र. ...
 
मुझे तीन दो शब्द ... इन्द्र. ...
 
मैं तुम्हारा प्रतिभू हूँ ... इन्द्र. ...
 
ओ लहर ... इन्द्र. ...
 
देना जीवन ... इन्द्र. ...
 
महानगर : रात ... इन्द्र. ...
 
हवाई यात्रा : ऊँची उड़ान ... इन्द्र. ...
 
रूप की प्यास ... इन्द्र. ...
 
धूप-बत्तियाँ ... इन्द्र. ...
 
सूर्यास्त ... इन्द्र. ...
 
एक दिन जब ... इन्द्र. ...
 
ब र्फ की झील ... इन्द्र. ...
 
पश्चिम के समूह-जन ... इन्द्र. ...
 
एक छाप ... इन्द्र. ...
 
बार-बार अथ से ... इन्द्र. ...
 
आगन्तुक ... इन्द्र. ...
 
भर गया गगन में धुआँ ... अप्र. ...
 
जितना तुम्हारा सच है ... इन्द्र. ...
 
क्यों आज ... इन्द्र. ...
 
योग-फल ... इन्द्र. ...
 
आदम को एक पुराने ईश्वर का शाप ... इन्द्र. ...
 
जिस दिन तुम ... इन्द्र. ...
 
मैं-मेरा, तू-तेरा ... इन्द्र. ...
 
कोई कहे या न कहे ... इन्द्र. ...
 
 
 
सागर और गिरगिट ... इन्द्र. ...
 
खुल गयी नाव ... इन्द्र. ...
 
तुम हँसी हो ... इन्द्र. ...
 
आखेटक ... इन्द्र. ...
 
पुरुष और नारी ... इन्द्र. ...
 
साधुवाद ... इन्द्र. ...
 
वैशाख की आँधी ... इन्द्र. ...
 
सागर-तट की सीपियाँ ... इन्द्र. ...
 
कवि के प्रति कवि ... इन्द्र. ...
 
सर्जना के क्षण ... इन्द्र. ...
 
हम कृती नहीं हैं ... अरी. ...
 
सुख-क्षण ... अरी. ...
 
चाँदनी चुप-चाप ... अरी. ...
 
 
 
सपने का सच ... अरी. ...
 
प्याला : सतहें ... अरी. ...
 
बाह्म मुहूर्त : स्वस्तिवाचन ... अरी. ...
 
एक प्रश्न ... अरी. ...
 
मोह-बन्ध ... अरी. ...
 
चेहरे असंख्य : आँखें असंख्य ... अरी. ...
 
हरा-भरा है देश ... अरी. ...
 
शब्द और सत्य ... अरी. ...
 
पगली आलोक-किरण ... अरी. ...
 
जागरण-क्षण ... अरी. ...
 
तू-मैं ... अरी. ...
 
 
 
चिन्ता : प्रथम पंक्तियों की अनुक्रमणिका
 
[कोष्ठकों में दी गयी संख्या कविता की क्रम-संख्या है।
 
संकेत : ए.-एकायन, वि.-विश्वप्रिया]
 
अगर तुम्हारी उपस्थिति में मैं अभिमान ... ए. ...
 
अपने तप्त करों में ले कर तेरे दोनों हाथ ... ए. ...
 
अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी ... वि. ...
 
अब भी तुम निर्भीक हो कर मेरी अवहेलना ... वि. (2) ...
 
आओ इस अजस्र निर्झर के तट पर ... ए. ) ...
 
आओ, एक खेल खेलें ... वि. ) ...
 
आओ, हम-तुम अपने संसार का फिर से ... वि. (9) ...
 
आज चल रे तू अकेला ... वि. ...
 
आज तुम से मिल सकूँगा, था मुझे विश्वास ... वि. ...
 
आज विदा! .... ए. ...
 
आ जाना प्रिय आ जाना ... वि. ...
 
आशा के उठते स्वर पर मैं मौन ... ए. ...
 
इतने काल से मैं जीवन की उस मधुर ... वि.) ...
 
इन्दु-तुल्य शोभने, तुषार-शीतले! ... वि. ...
 
इस अपूर्ण जग में कब किसने, प्रिय ... वि. ...
 
इस कोलाहल-भरे जगत् में भी एक कोना ... वि. ...
 
इस परित्यक्त केंचुल की ओर घूम-घूम कर ... वि. ...
 
इस प्रलयंकर कोलाहल में मूक हो गया क्यों ... वि. ..
 
इस मन्दिर में तुम होगे क्या ... ए. ...
 
इस विचित्र खेल का अन्त क्या, कहाँ ... वि. ...
 
उखड़ा-सा दिन उजड़ा-सा नभ ... वि. ...
 
उर-मृग बँधता किस बन्धन में ... ए. ...
 
ऊषा अनागता, पर प्राची में जगमग ... वि. ...
 
ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे ... ए. ...
 
ओ तू, जिसे आज मैं ने सह-पथिक लिया है मान... ए. ...
 
ओ तेरा यह अविकल मर्मर ... ए. ...
 
कभी-कभी मेरी आँखों के आगे से मानो ... वि. ...
 
करुणे, तू खड़ी खड़ी क्या सुनती ... ए.
 
कल मुझ में उन्माद जगा था, आज व्यथा ... वि. ...
 
कहीं किसी ने गाया ... ए. () ...
 
किन्तु विजयी! यदि तुम बिना माँगे ही ... ए. ...
 
कैसे कहूँ कि तेरे पास आते समय ... वि. ...
 
क्या खंडित आशाएँ ही हैं धन ... ए. ...
 
क्यों पूछ-पूछ जाती है तारक-नयनों की ... ए. ...
 
क्षण भर पहले ही आ जाते ... वि. ...
 
गंगा-कूल सिराने ओ लघु दीप ... ए. ) ...
 
गये दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है... वि. ...
 
गायक! रहने दो इन को, ये कातर-तार ... ए. ...
 
गोधूली की अरुणाली अब बढ़ते-बढ़ते ... ए. ...
 
घन-गर्जन सुन नाचे मत्त मयूर ... ए. () ...
 
'चुक गया दिन'-एक लम्बी साँस ... वि. ...
 
चौंक उठी मैं, मुझे न जाने क्यों सहसा ... ए. (2) ...
 
छलने, तुम्हारी मुद्रा खोटी है ... वि. ...
 
छाया, छाया तुम कौन हो? ... वि. ...
 
छाया, मैं तुम में किस वस्तु का अभिलाषी ... वि. ) ...
 
जग में हैं अगणित दीप जले ... ए. ...
 
जब तुम चली जा रही थीं तब मैं तुम्हारे ... वि. ...
 
जब तुम मेरी ओर अपनी अपलक ... ए. ...
 
जब तुम हँसती हो, तब तुम मेरे लिए ... वि. ...
 
जब मैं कोई उपहार ले कर तेरे आगे ... ए. ...
 
जब मैं तुम से विलग होता हूँ, तभी ... वि. ...
 
जब मैं वाताहत झरते फूल सरीखी ... ए. ...
 
जाते-जाते कहते हो, जीवन अब धीरज .. ए. ...
 
जान लिया तब प्रेम रहा क्या ... वि. ...
 
जाना ही है तुम्हें, चले तब जाना ... ए. ...
 
जितनी बार मैं नभ में कोई तारा ... ए. ...
 
जिह्वा ही पर नाम रहे तो कोई उसकी ... वि.) ...
 
जीवन का मालिन्य आज मैं क्यों ... वि. ...
 
जीवन तेरे बिन भी है ... ए. ...
 
जीवन बीता जा रहा है ... वि. ...
 
टूट गये सब कृत्रिम बन्धन ... ए. ...
 
तरु पर कुहुक उठी पड़कुलिया .. वि. ...
 
तितली, तितली! इस फूल से उस पर ... वि. ...
 
तुम आये, तुम चले गये! नाता जोड़ा था ... वि. ...
 
तुम गूजरी हो, मैं तुम्हारे हाथ की वंशी ... वि. ) ...
 
तुम चिर-अखंड आलोक ... ए. ...
 
तुम चैत्र के वसन्त की तरह हो ... वि. ...
 
तुम जो सूर्य को जीवन देती हो ... वि. ...
 
तुम देवी हो नहीं, न मैं ही देवी का ... वि. ...
 
तुम में यह क्या है जिस से मैं डरता हूँ ... वि. ) ...
 
तुम में या मुझ में या हमारे प्रणय व्यवहार में ... वि. ...
 
तुम मेरे जीवन-आकाश में मँडराता हुआ एक ... वि. ...
 
तुम्हारा जो प्रेम अनन्त है ... वि. () ...
 
तुम्हारी अपरिचित आकृति को देख ... वि. ...
 
तुम्हारे प्रणय का कुहरा आँसुओं की ... वि. (9) ...
 
तुम्हीं हो क्या वह-प्रोज्वल रेखाओं में ... वि. ) ...
 
तेरी आँखों में क्या मद है जिस को ... वि. ...
 
तेरी स्मित-ज्योत्स्ना के अर्णव में ... ए. ...
 
तोड़ दूँगा मैं तुम्हारा आज यह अभिमान ... वि. ...
 
दीप बुझ चुका, दीपन की स्मृति ... वि.
 
दीपक के जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं ... ए. ...
 
दूर, नील आकाश के पट पर खचित-से ... ए. ...
 
देवता! मैं ने चिरकाल तक तुम्हारी पूजा की ... वि. ...
 
दोनों पंख काट कर मेरे ... ए. ...
 
नहीं काँपता है अब अन्तर ... वि. ...
 
नहीं देखने को उस का मुख किंचित्ï ... वि. ...
 
नित्य ही सन्ध्या को, कुमुदिनी स्वप्न में ... ए. (2) ...
 
निराश प्रकृति विहाग गा रही है ... वि. ...
 
पथ पर निर्झर रूप बहे ... ए. ) ...
 
पथ में आँखें आज बिछीं प्रियदर्शन ... ए. ) ...
 
पीठिका में शिव-प्रतिमा की भाँति मेरे ... ए. ) ...
 
पुजारिन कैसी हूँ मैं नाथ ... ए.
 
पुरुष! जो मैं दीखती हूँ, वह मैं हूँ नहीं ... ए. ...
 
प्रत्यूष के क्षीणतर होते हुए अन्धकार में ... वि. ...
 
प्रदोष की शान्त और नीरव भव्यता से ... ए. ...
 
प्राण अगर निर्झर-से होते, पृथ्वी-सा यह ... ए. ) ...
 
प्राण, तुम आज चिन्तित क्यों हो ... वि. () ...
 
प्राण-वधूटी ... वि. ) ...
 
प्रियतम, आज बहुत दिन बाद ... ए. ...
 
प्रियतम, एक बार और, एक क्षण-भर ... ए. ...
 
प्रियतम! कैसे तुम्हें समझाऊँ कि वह अहंकार ... ए. () ...
 
प्रियतम, क्यों यह दीठ समीरण ... ए.) ...
 
प्रियतम! जानते हो, सुधाकर के अस्त होते ही... ए. ...
 
प्रियतम! देखो, नदी समुद्र से मिलने के लिए ... ए. ) ...
 
प्रियतम मेरे मैं प्रियतम की ... ए. ...
 
प्रियतमे! तुम मुझे कहती हो ... वि. निष्पत्ति ...
 
प्रिय, तुम हार-हार कर जीते ... ए. ...
 
प्रिये, तनिक बाहर तो आओ, तुम्हें सान्ध्य तारा... वि. ) ...
 
फूला कहीं एक फूल ... वि. ...
 
बहुत अब आँखें रो लीं ... ए. (2) ...
 
बार-बार रौरव जग का मेरा आह्वान ... ए. (9) ...
 
बाहर थी तब राका छिटकी ... वि. ) ...
 
भीम, प्रवाहिनी नदी के कूल पर बैठा ... वि. ..
 
मत पूछो, शब्द नहीं कह सकते ... ए. ...
 
मधु मंजरि, अलि, पिक-रव, सुमन, समीर ... ए. ...
 
मानस से कुछ ही ऊँचे, पर देव के ... ए. ...
 
मानव के तल के नीचे है नील अतल ... ए. ...
 
मुझे जान पड़ता है, मैं चोर हूँ ... ए. () ...
 
मुझे जो बार-बार यह भावना होती है ... वि. (9) ...
 
मृत्यु अन्त है सब कुछ ही का ... ए. ...
 
मेरी पीड़ा मेरी ही है तुम्हें गीत ही ... ए. ...
 
मेरे आगे तुम ऐसी खड़ी हो मानो ... वि. ...
 
मेरे आरती के दीप ... ए. ...
 
मेरे इस जीर्ण कुटीर में जिस में वर्षा ... ए. ) ...
 
मेरे उर की आलोक-किरण ... वि. ...
 
मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार ... वि.(2) ...
 
मेरे उर में जिस भव्य आराधना का ... ए. ...
 
मेरे गायन की तान टूट गयी है ... वि. ...
 
मेरे प्राण आज कहते हैं वह प्राचीन ... वि. ...
 
मैं अपने अपनेपन से मुक्त हो कर ... वि. ...
 
मैं अपने को एकदम उत्सर्ग कर देना चाहता हूँ... वि. () ...
 
मैं अपने पैरों के किंकिण-नूपुर खोल कर ... ए. ...
 
मैं अब सत्य को छिपा नहीं सकता ... वि. ...
 
मैं अमरत्व भला क्यों माँगूँ ... ए. ) ...
 
मैं आम के वृक्ष की छाया में लेटा हुआ हूँ ... वि. ...
 
मैं केवल एक सखा चाहता था ... वि.
 
मैं गाती हूँ, पर गीतों के भाव जगाने वाला तू... ए. ...
 
मैं जगत् को प्यार कर के लौट आया ... वि. ...
 
मैं जीवन-समुद्र पार कर के ... वि. ...
 
मैं-तुम क्या? बस सखी-सखा ... ए. ...
 
मैं तुम से अनेक बार जान-बूझ कर झूठ ... ए. ...
 
मैं तुम्हारे प्रेम की उस प्रोज्वल उड़ान को ... ए. ...
 
मैं तुम्हें किसी भी वस्तु की असूया ... वि. ..
 
मैं तुम्हें सम्पूर्णत: जान गया हूँ ... वि. ...
 
मैं ने अपने-आप को सम्पूर्णत: तुम्हें ... वि. ...
 
मैं ने तुम से कभी कुछ नहीं माँगा ... ए. ...
 
मैं ने देखा सान्ध्य क्षितिज को चीर, गगन में ... ए. ...
 
मैं समुद्र-तट पर उतराती एक सीपी हूँ ... ए. ...
 
यह केवल एक मनोविकार है ... वि. ...
 
यह भी क्या बन्धन ही है ... ए. ) ...
 
ये सब कितने नीरस जीवन के ... वि. ...
 
रजनी ऊषा में हुई मूक .... ए. ...
 
रवि गये-जान जब निशि ने घूँघट से ... ए. ...
 
रहने दे इन को निर्जल ये प्यासी भी ... ए. ...
 
रोते-रोते कंठ-रोध है जब हो जाता ... ए. ) ...
 
वधुके, उठो! ... वि. ) ...
 
वह पागल है ... वि. (92) ..
 
वह प्रेत है, उस में तर्क करने की शक्ति ... वि. ...
 
विजयी! मैं इस का प्रतिदान नहीं माँगती ... ए. ...
 
विदा! विदा! इस विकल विश्व से विदा ... वि. () ... 9
 
विदा हो चुकी (मिलन हुआ कब?) पर हा ... वि. ...
 
विद्युद्गति में सुप्त विकलता ... वि. ) ...
 
विफले! विश्व-क्षेत्र में खो जो ... वि. ...
 
विश्व-नगर में कौन सुनेगा मेरी मूक पुकार ... वि. ...
 
विस्मृति-विषाक्त हाला भी पिला दो ... ए. ...
 
व्यथा मौन, वाञ्छा भी मौन, प्रणय भी ... वि. () ...
 
शशि जब जा कर फिर आये-सरसी तब ... ए.) ...
 
शशि रजनी से कहता है, प्रेयसि, बोलो ... ए. ) ...
 
शायद तुम सच ही कहते थे-वह भी ... ए. ...
 
शीत के घन-अम्बर को चीर ... ए. (2) ...
 
संसार का एकत्व एक सामान्य निर्बलता ... वि. ...
 
सखि! आ गये नीम को बौर ... ए. ...
 
सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल ... वि. ...
 
समीकरण के झोंके में फूल हँसते हैं ... ए. ...
 
सुमुखि, मुझ को शक्ति दे वरदान तेरा ... वि. ) ...
 
स्वर्गंगा की महानता में ... वि. ...
 
हम एक हैं। हमारा प्रथम मिलन ... वि. ...
 
हमारा-तुम्हारा प्रणय इस जीवन की ... वि. ) ...
 
हमारा प्रेम एक प्रज्वलित दीप है ... वि. ...
 
हमें एक-दूसरे को कुछ नहीं कहना है ... वि. (2) ... 9
 
हा, कि मैं खो जा सकूँ ... वि. ...
 
हा वह शून्य! हाय वह चुम्बन! ... वि. ...
 
हे उपास्य! तू जान कि कैसे अब होगा निर्वाह... वि. ...
 
 
 
शेष (दो-तीन की) कविताओं की प्रथम पंक्तियों की अनुक्रमणिका
 
[यहाँ केवल उन कविताओं की प्रथम पंक्तियों की सूची है जिनके शीर्षक परिशष्ट-2 में दिये गये हैं; 'चिन्ता' की सूची परिशिष्ट- में है।]
 
अकारण उदास ...
 
अच्छा भला एक जन राह चला जा रहा है ...
 
अतिथि सब गये : सन्नाटा ...
 
अन्तिम रवि की अन्तिम रक्तिम किरण ...
 
अब हम फिर साथ हैं ...
 
अभी नहीं-क्षण भर रुक जाओ ...
 
अभी माघ भी चुका नहीं ...
 
अम्बार है जूठी पत्तलों का ...
 
अरे ओ खुलती आँख के सपने ...
 
अरे किसे तुम पकड़ते हो ...
 
अल्ला रे अल्ला ...
 
अवतंसों का वर्ग हमारा ...
 
आँसू से भरने पर आँखें ...
 
आओ बैठे इसी ढाल की हरी घास पर
 
आँख ने देखा ...
 
आँखें देखेंगी तो ...
 
आज चिन्तामय हृदय है, प्राण मेरे ...
 
आज तुम शब्द न दो, न दो ...
 
आज मैं पहचानता हूँ राशियाँ, नक्षत्र ...
 
आज सबेरे अचरज एक देख मैं आया ...
 
आज हम अपने युगों के स्वप्न को ...
 
आत्मा बोली : सुनो, छोड़ दो ...
 
आप ने दस वर्ष हमें और दिये ...
 
आशाहीना रजनी के अन्तस् की चाहें ...
 
आह-भूल मुझ से हुई ...
 
इतराया यह मौर ज्वार का
 
इन्हीें तृण-फूस छप्पर से 2
 
इस विकास-गति के आगे है कोई दुर्दम शक्ति कहीं
 
इस सूखी दुनिया में प्रियतम मुझ को और कहाँ ...
 
इसी जमुना के किनारे एक दिन
 
इसी में ऊषा का अनुराग ...
 
उजड़ा सुनसान पार्क ..
 
उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में ..9
 
उनींदी चाँदनी उठ खोल
 
उस तम-घिरते नभ के पट पर ...
 
उस पार चलो ना! कितना अच्छा है नरसल का झुरमुट ...
 
उसे नहीं जो सरसाता है ...
 
ऊगा तारा ... 9
 
ऊपर फैला है आकाश, भरा तारों से ...
 
एक क्षण-भर और रहने दो मुझे अभिभूत ...
 
एक छाप रंगों की ...
 
एक तीक्ष्ण अपांग से कविता उत्पन्न हो जाती है ...
 
एक दिन जब ...
 
एक दिन देवदारु-वन के बीच छनी हुई
 
एक मृषा जिस में सब डूबे हुए हैं ...
 
ऐसे ही थे मेघ क्वाँर के 9
 
ओ तू पगली आलोक-किरण ...
 
ओ पिया, पानी बरसा ...
 
ओ रिपु! मेरे बन्दी-गृह की तू खिड़की मत खोल ...
 
कंकड़ से तू छील-छील कर आहत कर दे ...
 
कई बार आकर्ण तान धनु ...
 
कब, कहाँ, यह नहीं
 
कभी मैं चाहता हूँ ...
 
कर चुका था जब विधाता प्यार के हित ...
 
कर से कर तक, उस से उर तक बढ़ती जा ...
 
कल जो जला रहे थे दीप ...
 
कवि, एक बार फिर गा दो ...
 
कवि, हुआ क्या फिर
 
कहती है पत्रिका ...
 
कहा सागर ने : चुप रहो ...
 
कहो कैसे मन को समझा लूँ ...
 
काँगड़े की छोरियाँ ...
 
कानन का सौन्दर्य लूट कर ...
 
कितनी शान्ति! कितनी शान्ति! ...
 
किरण मर जाएगी ...
 
किस ने देखा चाँद?-किस ने ...
 
किस ने देखा चाँद-जिस ने उसे ...
 
किसी एकान्त का लघु द्वीप मेरे प्राण में बज जाय ...
 
किसी को शब्द है कंकड़ ...
 
कुछ नहीं, यहाँ भी अन्धकार ही है 2
 
कोटरों से गिलगिली घृणा ..
 
क्रमश: मृत्यु : मृत्यु भी सत्य ही है ...
 
क्रान्ति है आवत्र्त, होगी भूल उस को मानना धारा ...
 
क्या घृणा की एक झौंसी साँस भी ...
 
क्षण-भर सम्मोहन छा जावे ...
 
खींच कर ऊषा का आँचल ...
 
खुल गयी नाव ...
 
खोज में जब निकल ही आया ...
 
गगन में मेघ घिर आये
 
ग्रीष्म तो न जाने कब आएगा
 
घन अकाल में आये ...
 
घन अकास में दीखा ...
 
घिर गया नभ, उमड़ आये मेघ काले ...
 
चट-चट-चट कर सहसा तड़क गये हिमखंड ...
 
चरण पर धर सिहरते-से चरण ...
 
चलो, चलें ...
 
चाँद तो थक गया ...
 
चाँदनी चुपचाप सारी रात ...
 
चातक पिउ बोलो बोलो ...
 
चार का गजर कहीं खड़का
 
चेतना की नदी बहती जाय तेरी ओर ...
 
चेहरे थे असंख्य ...
 
छन्द है यह फूल, पत्ती प्रास ...
 
छिटक रही है चाँदनी ...
 
छोड़ दे, माँझी! तू पतवार ...
 
जब-जब थके हुए हाथों से ...
 
जब-जब पीड़ा मन में उमँगी ...
 
जब झपक जाती हैं थकी पलकें ..
 
जब पपीहे ने पुकारा ...
 
जाओ अब रोओ ...
 
जिधर से आ रही है लहर ...
 
जियो उस प्यार में जो मैं ने तुम्हें दिया है ...
 
जिस दिन आया था वसन्त ...
 
जिस दिन तुम मार्ग पूछने निकले, उसी दिन ...
 
जीवन, देना ऐसा सुख ...
 
जीवन! / वह जगमग / एक काँच का प्याला था ...
 
जेठ की सन्ध्या के अवसाद-भरे धूमिल ...
 
जैसे तुझे स्वीकार हो
 
जो जिये वे ध्वजा फहराते घर लौटे ...
 
जो था, सब हम ने मिटा दिया ...
 
जो मेरा है ...
 
जो राज करें ...
 
झरने दो ..
 
झरोखे में से बहती हवा का एक झोंका ...
 
ठहर-ठहर, आततायी! जरा सुन ले ..
 
डरो मत, शोषक भैया : पी लो ..
 
तड़पी कीर की पुकार : प्राण ...
 
तनिक ठहरूँ, चाँद उग आये
 
तरुण अरुण तो नवल प्रात में ...
 
तालों के जाल घने ...
 
तीन दिन बदली के गये, आज सहसा ...
 
तुम जो कुछ कहना चाहोगे
 
तुम हँसी हो ...
 
तुम्हारा यह उद्धत विद्रोही ...
 
तुम्हारी देह मुझ को कनक-चम्पे की कली है ...
 
तुम्हीं हो क्या बन्धु वह, जो हृदय में ...
 
तू फाड़-फाड़ कर छप्पर चाहे ...
 
तेरी आँखों में पर्वत की झीलों का ...
 
तोड़ो मृदुल वल्लकी के ये ...
 
दर्प किया : शक्ति नहीं मिली ...
 
दीपक हूँ, मस्तक पर मेरे अग्निशिखा है नाच रही ...
 
दीप थे अगणित ...
 
दीप बुझेगा पर दीपन की ...
 
दृश्य के भीतर से ...
 
दृश्य लख कर प्राण बोले ...
 
दृश्यों के अन्तराल में ...
 
दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब ...
 
दूर दूर दूर...मैं वहाँ हूँ ...
 
दूरवासी मीत मेरे ..
 
देख क्षितिज पर भरा चाँद ...
 
देह-वल्ली ...
 
धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल ..
 
धरती थर्रायी, पूरब में सहसा उठा बवंडर ..
 
धीरे धीरे धीरे चली जाएँगी ...
 
धुँधली है साँझ, किन्तु अतिशय मोहमयी ...
 
धूप-माँ की हँसी के प्रतिबिम्ब-सी शिशु-वदन पर ...
 
नभ अन्तज्र्योतित है ...
 
नभ में सन्ध्या की अरुणाली ...
 
नया ऊगा चाँद बारस का ...
 
नये बादल में तेरी याद ..
 
ना, ना, फेर नहीं आतीं ये सुन्दर रातें ...
 
निमिष-भर को सो गया था प्यार का प्रहरी ...
 
निरालोक यह मेरा घर रहने दो ...
 
निशा के बाद उषा है, किन्तु ...
 
निविडाऽन्धकार को मूर्त रूप दे देने वाली ..
 
नीला नभ, छितराये बादल ...
 
पत्थरों के उन कँगूरों पर ...
 
पहले भी मैं इसी राह से जा कर ...
 
पाश्र्व गिरि का नम्र, चीड़ों में ...
 
पूछ लूँ मैं नाम तेरा ...
 
पूर्णिमा की चाँदनी सोने नहीं देती ...
 
पृथ्वी तो पीडि़त थी कब से ...
 
प्रच्छन्न गगन का वक्ष चीर ...
 
प्राण, तुम्हारी पद-रज फूली ...
 
प्रात होते सबल पंखों की ...
 
प्रियतम, पूर्ण हो गया गान ...
 
प्रिय! मेरे चरणों से पागल-सी ये लहरें टकराती हैं ...
 
प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ ..
 
फूल कांचनार के ...
 
फूल को प्यार करो ...
 
फैला है पठार ...
 
बद्ध! ...
 
बरसों की मेरी नींद रही ...
 
बह चुकीं बहकी हवाएँ चेत की ...
 
बाहर देख आया हूँ ...
 
भग्नावशेष पर मन्दिर के ...
 
भाले की अनी-सी बनी ...
 
भावों का अनन्त क्षीरोदधि ...
 
भोर का बावरा अहेरी ...
 
भोर की प्रथम किरण फीकी ...
 
भोर बेला-नदी-तट की घंटियों का नाद ...
 
भोर बेला-सिंची छत से ओस की तिप्-तिप् ...
 
मंजरी की गन्ध भारी हो गयी है ...
 
मरु बोला ...
 
मलय का झोंका बुला गया ...
 
माँगा नहीं, यदपि पहचाना ...
 
माँझी, मत हो अधिक अधीर ...
 
मानव की अन्धी आशा के दीप ...
 
मानस-मरु में व्यथा-स्रोत ...
 
मिथ, कल मिथ्या
 
मुक्त बन्दी के प्राण ...
 
मुझ में यह सामथ्र्य नहीं है मैं कविता कर पाऊँ ...
 
मुझे तीन दो शब्द कि मैं कविता कह पाऊँ ...
 
मुझे देख कर नयन तुम्हारे मानो किंचित् खिल जाते हैं ...
 
मुझे सब कुछ याद है ...
 
मूढ़, मुझ से बूँदें मत माँग! ...
 
मेघों को सहसा चिकनी अरुणाई छू जाती है ...
 
मेरी थकी हुई आँखों को ...
 
मेरे आह्वान से अगर प्रेत जागते हैं ...
 
मेरे उर में क्या अन्तर्हित है ...
 
मेरे प्राण-सखा हो बस तुम एक, शिशिर ...
 
मेरे प्राण स्वयं राखी-से ..
 
मेरे विचार हैं दीप ...
 
मेरे सारे शब्द प्यार के किसी दूर विगता के जूठे ...
 
मेरे हृदय-रक्त की लाली ...
 
मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने ..
 
मैं जो अपने जीवन के क्षण-क्षण के लिए लड़ा हूँ ..
 
मैं तेरा कवि! ओ तट-परिमित उच्छल वीचि-विलास ...
 
मैं ने कहा : कंठ सूखा है दे दे मुझे सुरा का प्याला ..
 
मैं ने कहा, डूब चाँद ...
 
मैं ने सुना ...
 
मैं भी एक प्रवाह में हूँ ..
 
मैं मरूँगा सुखी ...
 
मैं मिट्टी का दीपक ..
 
मैं वह धनु हूँ, जिसे साधने में ...
 
यह इधर बहा मेरे भाई का रक्त ...
 
यह ऊपर आकाश नहीं ...
 
यह दीप अकेला स्नेह-भरा ...
 
यह दु:सह सुख-क्षण ...
 
यह नहीं कि मैं ने सत्य नहीं पाया था ...
 
यह व्यथा की बात कोई कहे या न कहे ...
 
यह वसन्त की बदली ...
 
यही तो गा रहे हैं पेड़ ...
 
यहीं पर
 
ये तुम्हारे नाम की दो बत्तियाँ हैं ...
 
ये मेघ साहसिक सैलानी ...
 
रजनीगन्धा मेरा मानस ...
 
रण-क्षेत्र में जाने से पहले सैनिक! जी भर रो लो ...
 
रहा अज्ञ, निज को कहा अज्ञेय ..
 
रात के रहस्यमय, स्पन्दित तिमिर को ..
 
रात गाड़ी रुक गयी वीरान में ...
 
राह बदलती नहीं-प्यार ही सहसा मर जाता है ...
 
रेंक रे गधे ...
 
रो उठेगी जाग कर जब वेदना ...
 
लो यह मेरी ज्योति, दिवाकर ...
 
वंचना है चाँदनी सित ...
 
विजय? विजेता! हा! मैं तो हूँ स्वयं पराजित हो आया ...
 
वेदी तेरी पर माँ ...
 
वैर की परनालियों से हँस-हँस के ...
 
शत्रु मेरी शान्ति के ...
 
शरद चाँदनी बरसी ...
 
शहरों में कहर पड़ा है और ठाँव नहीं गाँव में ...
 
शान्त हो! काल को भी समय थोड़ा चाहिए ...
 
शिशिर ने पहन लिया वसन्त का दुकूल ...
 
सन्ध्या की किरण परी ने ...
 
सपने के प्यार को ...
 
सपने मैं ने भी देखे हैं
 
सबेरे-सबेरे तुम्हारा नाम ...
 
सबेरे-सबेरे नहीं आती बुलबुल
 
सम्भव था रजनी रजनीकर की ...
 
सहम कर थम-से गये हैं बोल बुलबुल के ...
 
सागर भी रंग बदलता है ...
 
साँप! तुम सभ्य तो हुए नहीं ...
 
सिमट गयी फिर नदी, सिमटने में चमक आयी
 
सीखा है तारे ने उमँगना ...
 
सीपियाँ ...
 
सुख मिला : उसे हम कह न सके ...
 
सुनो, तुम्हें ललकार रहा हूँ, सुनो घृणा का गान ...
 
सूरज ने खींच लकीर लाल ...
 
सोचने से बचते रहे थे ...
 
सो रहा है झोंप अँधियाला
 
हम एक लम्बा साँप हैं ...
 
हम दोनों / एक बार जो मिले रहे ...
 
हम नदी के दीप हैं ...
 
हम कृती नहीं हैं ...
 
हम ने पौधे से कहा ...
 
हम ने भी सोचा था कि अच्छी ची ज है स्वराज ...
 
हम ने हाथ नहीं बढ़ाया ...
 
हम यहाँ आज बैठे-बैठे ...
 
हवा से सिहरती हैं पत्तियाँ ...
 
हवा हिमन्ती सन्नाती है चीड़ में ..
 
हरी बिछली घास ...
 
हरे-भरे हैं खेत ...
 
हँस रही है वधू-जीवन तृप्तिमय है ...
 
हाँ, यह मोड़ आ गया ...
 
है, अभी कुछ और जो कहा नहीं गया ...
 
है यदि तेरा हृदय विशाल, विराट् प्रणय का इच्छुक क्यों ...

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