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कविता

लौटाना

नवनीत पांडे


लौटाना किसे अच्छा लगता है
वह भी तब
जब बरसों बरस की मेहनत
जद्दोजहद
तमाम दुश्वारियों
राजनीतियों, चालाकियों
दोस्तियों-दुश्मनियों को
पछाड़ते, निशाना साध
लक्ष्य को भेदते हुए
बहुत मुश्किल से पाया हो
यह बहुत मानीखेज है
फिर भी लौटाया गया है
कलेजा भर आया है
लौटाना भी
शब्दकोश के विदा शब्द की तरह
सबसे मुश्किल शब्द पाया है...


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