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बाल साहित्य

मेरा गाँव

जितेश कुमार


मेरा प्यारा, सुंदर गाँव,
जहाँ है बसती ठंडी छाँव।
बहती शीतल मंद हवा,
सौ रोगों की एक दवा।
इधर खेत है, उधर है पोखर,
फूसों वाली खपरों का घर।
शाम को लगती है चौपालें,
सुर में कुछ गीतो को गा ले।
रामू चाचा, रज्जब चाचा,
दोनों वेद कुरान को बाँचा।
यहाँ पेड़ पर फल लटके हैं,
घर-घर में मिलते मटके हैं।
बच्चों का है शोर-शराबा,
न जाने हम काशी-काबा।
मिल-जुलकर रहते हैं लोग,
यहाँ न पलते कोई रोग।
गाँव है मेरा चाँदी-सोना,
चलो बनाएँ इसे सलोना।  


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