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कविता

लव और प्रेम

प्रांजल धर


उदास प्रेमी ने स्वप्न में पाया
अतीत के सवा चार फीट गहरे गड्ढे में धँसकर
सोचने लगा मन
ये बारात कहाँ जा रही है
जहाँ श्रृंखला है सवारियों की,
सवार है घोड़े पर दूल्हा
और दूल्हे पर भूत, भूत पर उसका अतीत।
कब्जा करने के लिए ये घुड़सवार
किस दुर्ग की ओर बढ़ रहे हैं?
पर्वतीय अंचल की एक ढलती शाम को
किसी झील को दिया वचन कहाँ चला गया
और कहाँ गईं वे हवाएँ जिन पर
नाम लिखे रहते थे कुछ स्वप्नों के
जिन्हें सच होना था...
 
हृदय पर छाए प्रेम और दुर्ग पर किए कब्जे में
कुछ फर्क है या नहीं!
दूल्हे की अपनी परिभाषा है प्रेम की
प्रेम लव है यहाँ
और लव एक ‘फोर लेटर वर्ड’
जिसका वाक्य में कहीं भी
सुविधानुसार
प्रयोग किया जा सकता है
लेकिन प्रेम के ढाई अक्षर अभी तक अपरिभाषेय हैं।
मीर, ग़ालिब, मजनूँ और रूमी के
हो चुकने के बावजूद।
 

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