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कविता

विषयांतर

प्रांजल धर


नीली मद्धम मादक रोशनी
सर्द स्याह मुलायम रात
हवाओं की अठखेलियाँ
टिमटिमाते तारे और
बिजलियों का चमककर
लुप्त हो जाना
नदियों में डूबी
कुँआरी माँओं की तरह
 
तैरना जानते हुए भी
उनकी कड़वी असमर्थता
उन्हें कभी तैरने नहीं देती
कुछ-कुछ वैसे
जैसे अरसे बाद हुई
बारिश की पहली बूँदी
हरे-हरे पेड़ों की फुनगी या
गिलहरी की चंचल खोपड़ी पर
चाहकर भी नहीं रुक सकती
और सूखी धारा की कब्र में
खो जाती है हमेशा के लिए
 
और यह पूरा दृश्य
एक विषयांतर प्रस्तुत करता है!
 

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हिंदी समय में प्रांजल धर की रचनाएँ