ओस की गोल छोटी
और निर्मल लुढ़कती बूँद
कभी-कभी
मालिकों के फ्रिज से
टपक-टपक चू रहे पानी की
याद दिलाती है।
बाह्य अवरोधों और
बढ़ते तापमानों से
लड़ने की मानवीय जिजीविषा का
लंबवत रेखांकन करती है
यह एक अकेली
पत्ते पर लुढ़क रही गोल-गोल बूँद।
फिर भी
उजड़े सन्नाटे में
शास्त्रीय संगीत की धुन में
मस्त सभागार से निकलकर
ऐसा बिलकुल नहीं लगता।
तब यह
ग्राहकों से लड़कर हार चुकी
किसी वेश्या के
पावन पसीने की
पहली बूँद लगती है।