hindisamay head


अ+ अ-

कविता

प्रेम कहानियाँ

प्रांजल धर


प्रेम कुछ दूर चलकर रुक जाता है
जैसे नदी रुक जाए
और गोल-गोल घूमे
अपनी ही जीभ से
अपनी ही पूँछ को
बार-बार चूमे...
कहानियाँ भी कुछ दूर चलती हैं
लेकिन प्रेम से कुछ ज्यादा देर तक,
ज्यादा दूर तक
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
श्रुति परंपरा के जरिए
एक मुँह से दूसरे मुँह
एक कान से दूसरे कान
एक गाँव से दूसरे गाँव तक
फिर बुझ जाती हैं
आगे की कहानियों को देते हुए रास्ता।
पर प्रेम और कहानियों से बड़ी दूर तक
जाती हैं प्रेम-कहानियाँ
स्वयंवरों, अश्वमेघों, गीतों, गजलों,
और दृष्टांतों के बल पर।
जानना चाहता हर कोई
अमुक प्रेम कहानी का क्या हुआ आखिर!
कहाँ गए दोनों अंततः!
जीते कि हारे दुनिया से!
क्या! खुदकुशी कर ली दोनों ने?
फिर हर मानुष-मन अपने भीतर की
खाईनुमा पसर चुकी गहरी प्रेम-रिक्ति को
पूरा करता है
ऐसी कहानियों के बारे में चर्चा कर
सुनकर, सुनाकर, पूछकर, बताकर,
और चलती रहती हैं पंचायतें खाप पंचायतें
प्रेम-कहानियों को लेकर।
 

End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रांजल धर की रचनाएँ