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	तुमने 
	करौंदी के फूल की  
	महक देकर 
	एक लावारिस की 
	जिंदगी खरीद ली; 
	स्नेहिल छुअन का 
	कोमल भ्रम देकर 
	समझौता करा लिया, 
	बाजार बना दिया 
	उसे ! 
	...और अब मानवता की 
	कैलकुलस का विश्लेषण 
	करके कहते हो, 
	कि रिश्ते और समझौते 
	कभी साथ नहीं होते; 
	कि समकोण पर काटते हैं 
	हमेशा। 
	सच है... 
	दृश्यांतर के छिद्रों और 
	हृदय की गहराइयों में 
	कभी भी तालमेल नहीं होता। 
	शायद इसीलिए रिश्तों का 
	खत्म कभी खेल नहीं होता 
	और रिश्ते व बाजार में 
	       कोई मेल नहीं होता। 
	       
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