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कविता

सूना आकाश

प्रांजल धर


जब भी देखा है शिराय लिली को
उखरूल याद आ गया है
छोटे-से हृदय के भीतर मानो
माजुली समा गया है।
लोहित, सरमती, मानस, काजीरंगा
हाथी, बाघ, गैंडे और कमीज की बाईं बाँह पर बैठा
पूर्वोत्तर का लाचार पतंगा!
 
बैकाल के ओल्खोन से कम नहीं है
न ही ‘महानायक’ के सुपीरियर या
मिशिगन वाले ‘ग्रेट लेक्स’ के गीत से
न ही किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के
स्वर्णिम अतीत से !
न ही होलीफील्ड-टायसन की कुश्ती से
और न ही
माइकल जैक्सन या गोरी नायिकाओं के
कानफोड़ू संगीत से!
 
तेजू के पास का परशुराम कुंड
संतरे, अनन्नास और तांबुल के पेड़
ह्वेनसांग के चबूतरे पर सुंदर पक्षियों का
मनमोहक झुंड।
 
ब्रह्मपुत्र और बराक की घाटियों में
महसूस की है एक भयंकर प्यास -
इतना सूना भी नहीं रहा करता था ये आकाश!
 

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