कितनी लालसा है
प्रथम प्रेम को महसूसते हुए
उस प्रेमिका में
जिसके हाथ में कुछ नहीं
सिवा एक कलम के,
और जिंदगी का अर्थ
जंजीर है जिसके लिए!
उमड़ रहे प्रेम के ज्वार को
हाथ से बनाए कागजी
फूलों में उकेरती है
अपनी नजरबंद लेखनी से।
गुलाब के काँटेदार तने,
जुही के रंग, शेवाली की यादें
कमल की पंखुड़ियाँ
आधे झुके गेंदे की नरम-नरम कलियाँ
गुड़हल का खुलापन
या रातरानी का विशाल फैलाव...
सभी उभरे उसकी कलम से।
पर सब पैदाइश हैं उसकी बंदिशों के।
सूरजमुखी की लोच हो
या गुलमोहर का छायादार पेड़
सभी सलाखों के पीछे बैठी
उस नवेली प्रेमिका के
घिरे हुए जीवन के नकली सौंदर्य हैं।
जबकि असलियत समाई है
उसके जीवन की कैक्टस-सी पत्तियों में
नागफनी और बबूल-सी चुभनेवाली
आती हुई जाती हुई
हिचकोले खाती हुई
लंबी-लंबी साँसों में!