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कविता

क्यों आतीं आवाजें

प्रांजल धर


बहुत दूर चले जाते मन के रथ में जुते हुए घोड़े कभी-कभी
और कभी-कभी घोड़ों की नाल से आवाजें आतीं कुछ इस तरह
मानो दवाई की शीशी चौराहे पर गिरकर छन्न से टूटी हो।
 
दवाई उन लोगों की आखिरी आशा है
जिन्होंने अपने जीवन का कोई लंबा-चौड़ा बीमा नहीं कराया कभी
और जिनका जीना इस दुनिया में इसलिए जरूरी है ताकि
वह सारा दुख सौंपा जा सके उन्हें
जो कुछ लोगों द्वारा भोगे गए ठसाठस सुख के
बीहड़ असंतुलन के कारण पैदा होता समाज में, निरंतर।
 
मन के इस रथ पर सवारी करते गांधी, कभी मार्क्स, कभी यीशु
पहाड़ों, नदियों और कन्दराओं से होता हुआ यह रथ कई बार
मानवता का जघन्य उल्लंघन देखकर हिचकोले खाने लगता
हिल जाते तमाम समाजशास्त्रीय सिद्धांत, हिल जातीं चूलें भी...
 
बहुत दूर की बातें करने का क्या फायदा!
फायदा-नुकसान तो मन वैसे भी कहाँ देख पाता!
मुनाफे का गुणा-गणित ही ऐसी चीज है जिसका
दवाइयों या उनकी शीशियों से कोई भी ताल्लुक नहीं।
फिर क्यों गूँजतीं ध्वनियाँ शीशियों के फूटने की, छन्न-छन्न;
क्यों आतीं आवाजें घोड़ों की नाल से टप-टप! टप-टप-टप-टप !!
 

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