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कविता

कंधे कमजोर हैं

प्रांजल धर


ऐसे आदर्श अब खूँटी पर टाँग दिए जाएँगे
जिनकी सिर्फ नसीहत दी जाती रही।
नसीहत देने वाले चार परग भी नहीं चले जिन पर।
जिनको इसीलिए बकते लोग
कि निकाल सकें आपकी आँख का काजल वे,
कि फूल की सुगंध चुराकर अपना मकान सजा सकें।
जिनको इसलिए याद रखते लोग
कि वाक्य में सुविधानुसार उनका प्रयोग कर सकें।
 
उस हिरन की तरह गौरव कौन चाहता है
जिसकी सींग
राजा के महल में
ड्राइंग रूम में टाँग दी गई है।
उनके पुरखे भी शिकारी ही थे यह बताने के लिए।
कोई न कोई जरूर हो जाता था शिकार
उनके दाँवों का
जवाब नहीं होता था जिनके पाँवों का
जिधर निकलते घमासान मच जाता था।
 
मेरे कंधे कमजोर हैं
ऐसे गौरव और आदर्शों का बोझ उठा नहीं सकते।
इसलिए मेरी हत्या करो
इस तरह कि मर जाए मेरी आत्मा
पर दमकता रहे मेरे ललाट पर इनकार।
 

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