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बाल साहित्य

दीवाली दीप

श्रीप्रसाद


दीप जले दीवाली, दीप हैं जले
नन्हें बच्चे प्रकाश, के ये मचले

आँगन मुँडेर सजा, द्वार सजा है
लहराती दीपक की, ज्योति ध्वजा है
धरती पर जगर मगर तारे निकले
दीप जले दीवाली, दीप हैं जले

दीप रखे हैं हमने ही धरती पर
ज्योति सदा सबको लगती है सुंदर
देख उसे अँधियारा स्वयं ही गले
दीप जले दीवाली, दीप हैं जले

उत्सव है ज्योति का मनाते हैं हम
खुशियों के गीत सदा गाते हैं हम
बच्चे दुनिया के, आकाश के तले
दीप जले दीवाली, दीप हैं जले

ऊपर भी तारे हैं नीचे भी तारे
फूलों की भांति खिले दीपक हैं सारे
पेड़ों पर फल जैसे आज हैं फले
दीप जले दीवाली, दीप हैं जले

मेहनत की ज्योति अब जलाना हमको
धरती के कण-कण सूरज सा चमको
हो जाएगा प्रकाश, साँझ जो ढले
दीप जले दीवाली, दीप हैं जले

 


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