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बाल साहित्य

दही-बड़ा

श्रीप्रसाद


सारे चूहों ने मिल-जुलकर
एक बनाया दही-बड़ा,
सत्तर किलो दही मँगाया
फिर छुड़वाया दही-बड़ा!

दिन भर रहा दही के अंदर
बहुत बड़ा वह दही-बड़ा,
फिर चूहों ने उसे उठाकर
दरवाजे से किया खड़ा।

रात और दिन दही बड़ा ही
अब सब चूहे खाते हैं,
मौज मनाते गाना गाते
कहीं न घर से जाते हैं!

 


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