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बाल साहित्य

अमरूद बन गए

श्रीप्रसाद


आमों के अमरूद बन गए
अमरूदों के केले
मैंने यह सब कुछ देखा है
आज गया था मेले

बकरी थी बिलकुल छोटी सी
हाथी की थी बोली
मगर जुखाम नहीं सह पाई
खाई उसने गोली

छत पर होती थी खों खों खों
मगर नहीं था बंदर
बिल्ली ही यों बोल रही थी
परसो मेरी छत पर

गाय नहीं करती थी बाँ बाँ
बोली वह अंग्रेजी
कहा बैल से, भूसा खालो
देखो भालो, ए जी

मुझको हुआ बड़ा ही अचरज
मुर्गा म्याऊँ करता
हाथ जोड़कर बैठा था वह
चूहे से था डरता

पर जब उगा रात में सूरज
चंदा दिन में आया
क्या होने को है दुनिया में
मैं काफी घबड़ाया

तुरंत मूँद ली मैंने आँखें
और न फिर कुछ देखा
तभी लगा ज्यों जगा रही है
आकर मुझको रेखा

सपना देखा था अजीब सा
बिलकुल गड़बड़ झाला
सपनों की दुनिया में होता
सब कुछ बड़ा निराला!


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