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कविता

आकार बन गया

आरती


अधिक दिन नहीं हुए थे तुमसे मिले
कि मेरे भीतर फैली तरल मिट्टी
कोई आकार सा अख्तियार करने लगी
मेरे उजाड़ हुए दिनों से
आ टकराईं
खनखनाती लाल ईंटें
तिनके चिंदियाँ रेशे किसी घोंसले से उड़कर कुछ
मेरे तो मानो पर ही उग आए
और मैं उड़ी भी... दूऽऽऽर दूर


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हिंदी समय में आरती की रचनाएँ