कदम बढ़ाए थे मैंने डर डरकरमेरे शब्दों में शंकाओं की थरथराहट कोपकड़ा तुमनेमेरी पूरी हथेली अपनी हथेलियों में लेकरकुछ कहा शायदमैंने सिर्फ बुदबुदाहट सुनीऔर बस यंत्रवत कंधों में सिर धर दिया तुम्हारेअब मुझे डर नहीं लग रहा
हिंदी समय में आरती की रचनाएँ