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कविता

सुबह

विशाल श्रीवास्तव


बारिश में भीगी कस्बे की सुबह
पूरी तरह गीली और उदास है
और अचानक
क्षितिज पर कोई लापरवाही से
थका हुआ बेढब सूरज
टाँककर चला गया है चुपचाप
इस मद्धिम उजाले में
तमाम लोग कंधों पर 
स्याह रंग वाला समय ढो लाते हैं
अपनी सीली और नम सतह से
सुबह उन्हें उनके हिस्सों का दुख बाँटती है
 
बोझिल शोक को सँभालते लोग
दुख भूलने के लिए
आपस में संक्रामक इतिहास बतियाते हैं
इस तरह,  धकियाए और निर्वासित 
लोगों का यह जनपद
विलाप को किसी पक्के और गाढ़े सुर में गाता है
आइए इसे
इस गीली और उदास सुबह का
विलक्षणतम संगीत कहें।
 

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