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कविता

खाली

विशाल श्रीवास्तव


बच्चे एक खाली और पुराने कुएँ में झाँक रहे हैं
अचानक अभी वे
अपने तरुण फेफड़ों में भरेंगे भरसक हवा
और पूरी ताकत से चिल्लाएँगे
कोई साधारण सा शब्द
जो उनके किसी दोस्त का नाम भी हो सकता है
उसे पुकारता हुआ यह फिरेगा निर्भय हवा में
और बच्चों के मन को उजास से भर देगा 
या फिर हो सकता है वे ताजा पढ़ी जा रहीं
कहानियों के किसी जादूगर या परी को बुलाएँ
एक साथ 
जो उनकी स्मृतियों की दुनिया में इस समय
आत्मीय मेहमान की तरह रह रहे हों
बच्चे उस खाली जगह
को किसी भी शब्द से भर सकते हैं
दे सकते हैं
उस खालीपन के एक-एक परमाणु को गति
बल्कि वे चाहें तो
कोई कच्ची गाली भी दे सकते हैं
बेशक वे ऐसा करेंगे
तो मैं बहुत अच्छा महसूस करूँगा
बस वे उस जगह में
कोई चालू नारा न उछालें
इससे तो वह जगह खाली ही भली
 

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