hindisamay head


अ+ अ-

कविता

रोहतांग पर गड़रिये

विशाल श्रीवास्तव


जहाँ नहीं है हवा
नहीं है पानी 
नहीं हैं पेड़ 
सिर्फ है
हड्डियाँ गलाने वाली ठंड
वहाँ हैं
किसी मध्यकालीन मिथक की तरह गड़रिये
विचरते निर्द्वंद्व अपने भरे-पूरे रेवड़ के साथ 
 
ये सड़कों पर नहीं सीधे पहाड़ों पर चलते हैं
इसलिए इन्हें नहीं पता है सड़क बनाने वालों के बारे में
और इसीलिए इन्हें कुछ नहीं पता है
सड़क उखाड़ने वालों के बारे में भी 
ये सिर्फ पहाड़ी निर्जन पथों के विशेषज्ञ हैं
 
इन्हें नहीं पता है अपनी सरकार के बारे में
नहीं पता है कोई कानून
यहाँ रोहतांग पर इन्हें नहीं महसूस होती
दिल्ली की बड़ी से बड़ी उथल-पुथल
इन्हें नहीं पता है कि जिस चीन को
ये रोज पहाड़ों से देखते हैं
उसके साथ भारत का कैसा सामरिक रिश्ता है
या फिर यहाँ से नीचे उतर कर 
केलांग पार करते जिस लेह तक
ये पहँच जाते हैं कई बार
वह कश्मीर है और वहाँ का कानून दूसरा है
ये अनभिज्ञ है दूसरे कानून के बारे में
पहले कानून की ही तरह
 
इनकी आत्मा में चूँकि 
असभ्यता का प्रतिशत अधिक है
इसलिए ये शांत रहते हैं
 
हत्या नहीं करते हैं गड़रिये
रोहतांग पर कभी दंगा नहीं होता
 

End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में विशाल श्रीवास्तव की रचनाएँ