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कविता

प्रिय महोदय

विशाल श्रीवास्तव


प्रिय महोदय
अतिशय धन्यवाद
कि आप पधारे शीतल बयार की तरह
करुणा क्लिन्न होकर देखा 
मेरे घर के असबाब को
और बैठे मुझे धन्य करते हुए
 
धन्यवाद 
कि आपने सिर्फ उन्हीं चीजों के बारे में बात की
जिनके बारे में बात करने से पहले आपको पता था कि
उनसे कोई खास खतरा नहीं था
जैसे आपने कविता-वविता के बारे में बात की
तारीफी लहजे में
लेकिन मेरी नौकरी के बारे में नहीं की कोई बात
आपने भूमंडलीकरण-वरण के बारे में बात की
मेरी माली हालत के बारे में नहीं
आपको पता था कि मेरे पास सिर्फ साइकिल है
इसलिए तेल के बढ़ते दामों के बारे में आपने कुछ नहीं कहा
आपने सिर्फ उन्हीं दोस्तों के नाम लिए
जिनके बारे में आपको पता था कि उनसे बंद नहीं मेरी बोल-चाल
 
हाँ आपने मेरे प्रेम के बारे में खूब बातें की
और आँखों में एक अजीब हिंस्र चमक के साथ
जानना चाहा बेहद अंतरंगता से मेरी प्रेमिका का हाल-चाल
आपने मेरी माँ की बीमारी के बारे में कुछ नहीं पूछा
 
धन्यवाद कि आपने रखा ध्यान मेरे स्वाभिमान का
और ऐसा कुछ भी नहीं पूछा जिससे मुझे असुविधा हो
 
पर पता नहीं क्यों ऐसा लगता है
कि आपका दिल करता था 
कि मेरी कविता के बारे में बात करते हुए
विदेशी आलोचकों के नाम लेकर 
मेरी कविता की त्वचा में भुस भर दें
अपनी नई कार के बारे में बात करते हुए
बता दें मुझे मेरी नौकरी की औकात 
दोहरा देखें तमाम दोस्तों द्वारा मुझे दी जाने वाली गालियाँ
और चीख कर कहें कि अपनी माँ से कहो खाँसना बंद करे
और मुझे अपनी प्रेमिका की देह के बारे में कुछ बताओ
 
च्च च्च च्च च्च ...
प्रिय महोदय कीजिएगा क्षमा 
कि मैंने आप सरीखे शिष्ट व्यक्ति के बारे में 
सोचा यह सब गंदा-गंदा
पर क्या करूँ कि बावजूद इसके
कि आपके कपड़ों पर था बेशकीमती इत्र
आपके जाने के बाद मेरे कमरे में एक गंध थी
जिससे फटने लगे मेरे नथुने और लगा मुझे
कि आपका कहा हुआ सारा कुछ
दरअसल आपके कहे का विपर्यय था
 
प्रिय महोदय 
हो सके तो
कीजिएगा क्षमा 
 

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