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बाल साहित्य

दादी जी के पास

शादाब आलम


मैं तो हरदम रहना चाहूँ
दादी जी के पास।

गुस्सा होकर मम्मी मुझ पर
जब चिल्लाने लगतीं
तो दादी जी फौरन उनको
डाँट लगाने लगतीं।
पाकर उनका साथ, कभी मैं
होती नहीं उदास।

ऐसा लगता कि वह मेरा
नन्हा मन पढ़ लेतीं
बिन माँगे ही इमली वाली
टॉफी मुझको देतीं।
बातें उनकी मन में भरतीं
खुशियाँ और मिठास।

शाम ढले तो उनकी गोदी
में जाकर छिप जाती,
लोरी जब वह गाती हैं तब
नींद मुझे है आती।
थपकी उनकी मुझे कराए
प्यार भरा एहसास।


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