जर्जर हालत में है, अपने
अब्दुल चाचा का छप्पर।
चले हवा जब सर-सर-सर-सर
काँप उठे यह थर-थर-थर-थर
आँधी-अंधड़ मारा करती,
हैं इसको ठोकर-टक्कर।
बिजली चमके चम-चम-चम-चम
पानी बरसे झम-झम-झम-झम।
जगह-जगह से टपक रहा यह
दुख में डूबा है घर-भर।
चूल्हा-बर्तन, कपड़े-बिस्तर
टप-टप पानी चूता इन पर।
घर में कीचड़-पानी होने
से पनपें मक्खी-मच्छर।
दो घर होते अपने तो मैं
दे देता इक चाचा को मैं।
फिर उनके घर की हालत, न
बारिश कर पाती बदतर।