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बाल साहित्य

बचपन जिंदाबाद!

शादाब आलम


जैसे पंछी वैसे हम भी
मस्त-मगन,आजाद।
बचपन जिंदाबाद!

अपनी नन्हीं दुनिया
अजब-अनोखी, खास
दुख-चिंता को न दें
कभी फटकने पास।

अपनी बातों के आगे न
हमको कुछ भी याद
बचपन जिंदाबाद!

किले शरारत के हम
रोज बनाया करते
हँसी-खुशी के मोती
मुफ्त लुटाया करतें
धमा-चौकड़ी खेल तमाशे
में हम हैं उस्ताद।
बचपन जिंदाबाद!

चंचल,भोले,हँसमुख
हम तो हैं अलबेले
मन में बुनते रहतें
सपने नए-नवेले।
दिन अपने ये रहें हमेशा
अपनी यही मुराद
बचपन जिंदाबाद!


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