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कविता

बचपन अगर बचावे के बा

भगवतीप्रसाद द्विवेदी


बचपन अगर बचावे के बा
फूल बचाईं जी !

फूल बचावे के होखे
पाँखुरी मरोड़ीं मत
मत नीलाम करीं खुशबू के
विष अब घोरीं मत
जहर घोरि के मासूमन पर
कहर ढाईं जी !

तितली के उड़ान पर बंदिश
कबो लगाइब मत
पाँखी के पर कतरि
दइँतन-अस हिहियाइब मत
ओह अबोध आँधिन में
सूरज चान उगाईं जी !

पेट भूख के शाला में
अलचारी आज पढ़े
बिना तेल के बाती
भभक-भभक के रोज जरे
झंझावत न छले दिया के
जुगत भिड़ाईं जी !

घर भर के, घर के कुक्‍कुर के
खेल-खिलौना से
खाइ डाँट-फटकार, लोर पी
बनल डिठौना जे
नीन परी, तोतराह सपन
ओकर लौटाईं जी !

बचपन के बचपना
अउर शैतानी बनल रहे
खेलकूद धींगामुश्‍ती
नादानी बनल रहे
नटखट अल्‍हड़ हँसी फुला के
फरीं-फलाईं जी !


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