जगह जगह बिखरी थीं घर की परेशानियाँ
साफ दिखती थीं दीवारें
एक चीज से छूटती थी किसी दूसरी चीज की गंध
कई कोने थे जहाँ कभी कोई नहीं गया था
जब तब हाथ से गिर जाता
कोई गिलास या चम्मच
घर के लोग देखते थे कविता की तरफ बहुत उम्मीद से
कविता रोटी और ठंडे पानी की एक घूँट के एवज
प्रेम और नींद की एवज कविता
मैं मुस्कराता था
कहता था कितना अच्छा घर
हकलाते थे शब्द
बिंब दिमाग में तितलियों की तरह मँडराते थे
वे सुनते थे एकटक
किस तरह मैं छिपा रहा था
कविता की परेशानियाँ।