माँ मुझे पहचान नहीं पाई
जब मैं घर लौटा
सर से पैर तक धूल से सना हुआ
माँ ने धूल पोंछी
उसके नीचे कीचड़
जो सूखकर सख्त हो गया था साफ किया
फिर उतारे लबादे और मुखौटे
जो मैं पहने हुए था पता नहीं कब से
उसने एक और परत निकालकर फेंकी
जो मेरे चेहरे से मिलती थी
तब दिखा उसे मेरा चेहरा
वह सन्न रह गई
वहाँ सिर्फ एक खालीपन था
या एक घाव
आड़ी तिरछी रेखाओं से ढँका हुआ।