यह वाक्य आपने प्राणनाशिनी, कष्टदायिनी, भीड़युक्त बसों के भीतर, सामने या आजू-बाजू में सुवाच्य अक्षरों में अंकित अवश्य देखा होगा। वह भी तब, जब आपको संयोग से सीट और गर्दन हिलाने सहूलियत मिली हो।
इस वाक्य का एक सूक्ष्म अर्थ निकालता है जिसे एक साधारण यात्री नहीं समझ पाता। इसका आशय यह है कि आपकी यात्रा को सफल बनाने जिम्मेदारी मात्र ईश्वर पर है। बस-मालिक, ड्रायवर, कंडक्टर और क्लीनर का आपकी यात्रा से कोई सरोकार नहीं है। वे सिर्फ आपकी जेब हल्की करने के अधिकारी हैं। आपको गंतव्य तक पहुँचाने की उनकी कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं है। अर्थात आप रामभरोसे चल रहे हैं। अतः बिना हीला-हवाले स्वयं को बस के हवाले कर दीजिए जैसा कि हमारा देश हवाला के हवाले है।
बस वही जो बस न कहे। बस का अर्थ ही यही है। इसलिए बसें अपने नाम को सार्थक करतीं हुईं नजर आती हैं। हर छोटे से छोटे स्टेशन एवं फाटे पर रुककर सवारियाँ लेना एक आम बस का स्वभाव है। भीतर कितनी ही सवारियाँ ठूँस-ठूँस कर क्यों न भरी हों, फिर भी दस-बीस सवारियों को उदरस्थ करने लेना इनके लिए सामान्य बात है। सवारियाँ भी इतनी उदार हृदय की होती हैं कि सीट न मिलने और खड़े होने की गुंजाइश न होने पर बोनट पर बैठकर भी अपना सफर तय कर लेती हैं।
इधर, आगे के दरवाजे से कंडक्टर खड़ी सवारियों को धकेलते हुए, ‘आगे बढ़ो’ का आह्वान करता है तो उधर क्लीनर पीछे के दरवाजे से ‘आगे बढ़ो’ की गुहार लगाता है। बेचारी सवारियाँ असमंजस की स्थिति में बीच में बुरी तरह पिसती रहती हैं।
कुछ लोग बस के ऊपर चढ़कर और कुछ आजू-बाजू या पीछे लटककर अपनी यात्रा का बलपूर्वक आनंद लेते हैं। इन्हें देखकर मुझे दुष्यंत कुमार बरबस याद आते हैं - ‘न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे / ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।’
यों तो बसों में अनेक सूक्तियाँ शोभित होती हैं, लेकिन उनमें ‘धूम्रपान वर्जित है’ एक महत्वपूर्ण सूक्ति है। किंतु हम महान भारतीय जन जहाँ ‘थूकना मना हो’ लिखा हो, वहाँ थूकने को विवश हैं। सर्वप्रथम तो ड्राइवर और कंडक्टर ही धुआँ उड़ते मिल जाएँगे। सवारियाँ इस मामले में दो कदम आगे मिलती हैं। एक बीड़ी बुझी नहीं कि दूसरी जल जाती है, वो शमाँ क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे। आप उल्टियाँ करते रहिए, नाक पर रूमाल धरे रहिए और देखते रहिए - ‘धूम्रपान वर्जित है।’
धूम्रपान की तो बात ही छोड़ें। आपके बगल का यात्री सुरापान किए हो सकता है। आप देशी दारू की सुवास झेलते रहिए। वह बार-बार आपकी गोद में पड़ने पर आतुर रहेगा। अब आपका यह परम कर्तव्य है कि आप खुद भी सँभलें और उसे भी सँभालें।
हमारी सडकों की भी वही स्थिति है जो हमारी बसों की है। आप इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाएँगे कि सड़क के बीच गड्ढे हैं की गड्ढों के बीच सड़क! बहरहाल, आप बस में बैठकर दचकों का भरपूर आनंद ले सकते हैं।
ड्राइवर, कंडक्टर और क्लीनर सभी की यह पुरजोर कोशिश रहती है कि किसी भी तरह दुर्घटनाग्रस्त होकर किसी अस्पताल की शोभा बढ़ाएँ या देश की जनसंख्या कम करने में योगदान दें। फिर भी यदि आप सशरीर सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुँच जाएँ तो ईश्वर को धन्यवाद देना कभी न भूलें क्योंकि वही तो है जिसने आपकी यात्रा को ‘सफल’ बनाया है।