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लघुकथाएँ

विश्वास

निधि जैन


"लो, मैं, घर से जो कुछ भी हाथ लगा, गहने-पैसे सब ले आई हूँ, अब तो हम शादी कर सकते हैं न, अब तो पैसे की भी कोई कमी नहीं होगी", अनिल का साथ मिल जाने की उम्मीद में खुशी से आँखें चमकाती रीना बोले ही जा रही थी। अनिल की आँखें पैसे और गहने देखकर बाहर को निकली जा रहीं थी। वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि पापा की लाड़ली बेटी ऐसा भी कर सकती थी उस जैसे मूल्यविहीन इनसान (?) के लिए। फिर सोची समझी साजिश के तहत धाँय की एक जोरदार आवाज हुई। चारों तरफ शून्य बटे सन्नाटा पसर गया। अनिल ने जल्दी जल्दी गहने रुपये समेटे और भाग गया।

रीना का किया गया विश्वासघात फलीभूत हो गया था।


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