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लघुकथाएँ

प्रकाश

निधि जैन


“सुनती नही है... कितनी बार कहा है, बाद की रोटियाँ बिना घी की रखा कर। बच जाएँ तो बाई को देने में दुख तो न लगे।” ठाकुर जी के आगे शुद्ध घी का दीपक मिलकाती अम्मा जी अपनी दुल्हन को डाँट पिलाती बोली।

दुल्हन प्रकाश से भरे हुए कमरे में दीपक मिलकाने का औचित्य सोचती हुई, सारी रोटियाँ घी से चुपड़ कर अपने मन के प्रकाश से रसोई और धर्म को फिर से प्रकाशित कर देती है।


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