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कविता

बूढ़ा पीपल

उर्मिला शुक्ल


गाँव की सीमा पर
अक्सर खड़ा मिलता था
एक बूढ़ा पीपल।
सहकर शीत और ताप
करता था रखवाली
सारे गाँव की।

गाँव में नहीं रहे
अब लोग
उसे छोड़ कर
चले गए सब
फिर भी खड़ा है वो वहीं
उसी तरह

उसकी आँखों में है
इक आस कि
कभी तो फिर...

इसी आस में
आज भी खड़ा है
गाँव का बूढ़ा पीपल


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