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कविता

तिरंगा

उर्मिला शुक्ल


हवा में लहराता तिरंगा
पूछ रहा है मुझसे
आखिर कब तक
ढोऊँगा मैं
इन रंगों भार ?
कब तक फहराऊँगा मैं
यूँ ही निरर्थक ?
कब ? आखिर कब ?
समझोगे तुम
इन रंगों का महत्व ?


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