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कविता

नई जड़ी-बूटी

शेषनाथ पांडेय


तुम मुझे बुलाती हो तो लगता है
संजीवनी प्रदेश से आई एक नई जड़ी बूटी मेरी साँसों से मिल रही है
तुम सिर्फ प्राण नहीं जीवन देती हो

तुम डरती हो कि मैं तुम से दूर हूँ
इससे पहले की यह दूरी मेरे मन में दीमक की तरह न लग जाए
और खा जाएँ तुम्हारे सौंदर्य को
तुम मुझे बुला लेना चाहती हो

मैं डरता हूँ कि कभी आ ही ना पाऊँ तुम्हारे पास
तो कैसे जी उठूँगा अपनी रोजाना के रेजगारी मौतों से

संजीवनी प्रदेश से आई नई जड़ी-बूटी
तुम जानती हो|
हिंदी का एक कवि किसी पैसा और पुरस्कार से नहीं
तुम्हारे सहारे लिखता है कविताएँ
और जब तुम्हें चूमता है
डर की तमाम नस्लों वाली दीवारें शीशे की तरह चटक जाती है

इसलिए मेरी जड़ी बूटी डर की जगह मेरा चुंबन सजा लो
एक मीठा चुंबन ठीक उसी जगह
जहाँ पर तुम कान में बाली पहनती हो

मेरे खुरदरे होठों का
खुरदरा सहलाव तुम्हारे कंठो पर
जिसके सुरों से तुम दुनिया बोलती हो

महीन साँसों की एक बयार तुम्हारी जुल्फों में
जिससे संसार सजा हुआ लगता है

एक हाथ तुम्हारे हाथों में
एक हाथ वहाँ पर
जहाँ से तुम हमें खींचती हो
तब मेरे दोनों हाथ अनंत में विचरते है
तुम अनंत को अपनी बाँहों में भर लेती हो

मेरी सिमरन तुम
मेरी सिहरन तुम
मेरी सधी हुई साँसें
सिर्फ तुमसे उखड़ सकती है
मेरी उखड़ी हुई साँसें
सिर्फ तुम से सध सकती है
तुम संजीवनी प्रदेश से आई एक नई जड़ी बूटी हो

मैं तुम्हें पहचानता हूँ
तुम प्राण नहीं जीवन देती हो


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