खराब ख ख खुले खेले राजा खाएँ खाजा. खराब ख की खटिया खड़ी खिटपिट हर ओर खड़िया की चाक खेमे रही बाँट. खैर खैर दिन खैर शब खैर. (पश्यन्ती - 2003)
हिंदी समय में लाल्टू की रचनाएँ