खिलने को जन्मा दिन मुर्झाता मैंने देखा उसे देखा दिन खिलने को जन्मा दिन जन्मा एक बार फिर मैं जन्मा उसे देखा देखा चराचर खिल रहे अपने-अपने दुखों में बराबर दिन खिलता रोता मैंने देखा दिन खिलने को जन्मा. कृति ओर(2009)
हिंदी समय में लाल्टू की रचनाएँ