कविता में घास होगी जहाँ वह पड़ी थी सारी रात.
	कविता में उसकी योनि होगी शरीर से अलग.
	
	कविता में ईश्वर होगा बैठा उस लिंग पर जिसका शिकार थी वह बच्ची.
	होंगीं चींटियाँ, सुबह की हल्की किरणें, मंदिरों से आता संगीत.
	
	कविता इस समय की कैसे हो.
	आती है बच्ची खून से लथपथ जाँघें.
	बस या ट्रेन में मनोहर कहानियाँ पढ़ेंगे आप सत्यकथा उसके बलात्कार की.
	
	हत्या की.
	कविता नहीं.
	
	(हंस - 1994)